Friday, December 26, 2014

बस मैं हूँ और मेरी तन्हाई है,
चारों ओर गमो की परछाई है ,
यूँही निकल पड़े है अश्क आँखों से ,
बस तुम्हारी याद सी आई है .|

कुछ फासले भी हैं,कुछ दूरियां भी है ,
कैसे करोगे ऐतबार, कुछ मजबूरियाँ भी है,
रखना संभाल क कदम राह -ए -मोहब्बत में ,
कहीं कुएँ है तो कहीं खाई है ,
बस मैं हूँ ओर मेरी तन्हाई है ,,,,,|

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