Sunday, December 25, 2016

ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के  चल दिये ..

ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के  चल दिये ,
मैं हस रहा था , मुझको रुलाकर के  चल दिये |

आने  नहीं  दी रौशनी  आफ़ताब कि घर में,
ये क्या कम था जो ,चिरागों को बुझाकर के  चल दिये |

आने लगे हम याद जब  ,सफ़र हो गया मुश्किल ,
फिर तस्वीर मेरी सीने से  लगाकर के चल दिये |

वादे किये थे उसने ,प्यार करेगा उम्रभर ,
वादे सभी ,वो अपने भुलाकर के चल दिये |

मशरूफ़ है ,बहुत वो अपनी जिंदगानी में ,
हमको तो अपनी यादों से ,मिटाकर के चल दिये |

खयालों में उनके ,हम तो खोये थे एस कदर ,
अच्छा हुआ जो ख़ुद ही ,जगाकर के चल दिये ,

तेरे नही हो सकते हम ,इस  जन्म में सनम ,
वो अपनी मजबूरियों को गिनाकर के चल दिये |

हर जाम में नज़र आने लगा था चेहरा उनका ,
अच्छा किया जो नजरों से ,पिलाकर के चल दिये |

(मयंक आर्यन )