ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के चल दिये ..
ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के चल दिये ,मैं हस रहा था , मुझको रुलाकर के चल दिये |
आने नहीं दी रौशनी आफ़ताब कि घर में,
ये क्या कम था जो ,चिरागों को बुझाकर के चल दिये |
आने लगे हम याद जब ,सफ़र हो गया मुश्किल ,
फिर तस्वीर मेरी सीने से लगाकर के चल दिये |
वादे किये थे उसने ,प्यार करेगा उम्रभर ,
वादे सभी ,वो अपने भुलाकर के चल दिये |
मशरूफ़ है ,बहुत वो अपनी जिंदगानी में ,
हमको तो अपनी यादों से ,मिटाकर के चल दिये |
खयालों में उनके ,हम तो खोये थे एस कदर ,
अच्छा हुआ जो ख़ुद ही ,जगाकर के चल दिये ,
तेरे नही हो सकते हम ,इस जन्म में सनम ,
वो अपनी मजबूरियों को गिनाकर के चल दिये |
हर जाम में नज़र आने लगा था चेहरा उनका ,
अच्छा किया जो नजरों से ,पिलाकर के चल दिये |
(मयंक आर्यन )