Thursday, January 5, 2017

अपनी ये मुक्तक ,एक आशा और अनुरोध के साथ वर्तमान सदी के पुत्रों को समर्पित करता हूँ जो अपने माँ-बाप को उनके वृद्धा अवस्था में उन्हें छोड़ देते हैं .. आशा है वो अपने मां-बाप की भावनाओं को समझेंगे ,और अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करेंगे ..धन्यवाद ...

हृदय की वेदनाओं को ,हृदय में हीं समोती है ,

तुम्हारी याद आने पर ,खिलौनों को संजोती है ,
अवस्था ढल गयी उसकी, तो ठुकरा दिया तुमने ,
जो कल तुमको हसाती थी,वही मां आज रोती है |
        (मयंक आर्यन)

ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के  चल दिये ..

ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के  चल दिये ,
मैं हस रहा था , मुझको रुलाकर के  चल दिये |

आने  नहीं  दी रौशनी  आफ़ताब कि घर में,
ये क्या कम था जो ,चिरागों को बुझाकर के  चल दिये |

आने लगे हम याद जब  ,सफ़र हो गया मुश्किल ,
फिर तस्वीर मेरी सीने से  लगाकर के चल दिये |

वादे किये थे उसने ,प्यार करेगा उम्रभर ,
वादे सभी ,वो अपने भुलाकर के चल दिये |

मशरूफ़ है ,बहुत वो अपनी जिंदगानी में ,
हमको तो अपनी यादों से ,मिटाकर के चल दिये |

खयालों में उनके ,हम तो खोये थे एस कदर ,
अच्छा हुआ जो ख़ुद ही ,जगाकर के चल दिये ,

तेरे नही हो सकते हम ,इस  जन्म में सनम ,
वो अपनी मजबूरियों को गिनाकर के चल दिये |

हर जाम में नज़र आने लगा था चेहरा उनका ,
अच्छा किया जो नजरों से ,पिलाकर के चल दिये |

(मयंक आर्यन )