Friday, March 30, 2018

गज़ल
इस बाग़ के ये गुल भी, मशहूर हो रहे हैं,
 डाली से टूटकर के, अब दूर हो रहे हैं,

इक टीस उठ रही है, तेरे बिछड़ जाने से,
तेरे इश्क़ के हैं मारे, मजबूर हो रहे हैं,

अब टूटने लगी है, सांसो की डोर अपनी,
सब फैसले तुम्हारे, अब मंजूर हो रहे हैं,

हौसले कुछ यूँ कि आसमां को हरा देंगे,
परिंदे भी अपनी उड़ान पे मगरूर हो रहे हैं||

यहीं याद है तुम्हारी तो बेहतर है

कोई शाम हो,
जो ढल रही हो  युहीं अनमने ढंग से ,
लालिमाओं को दामन में समेटे जा रही हो ,
परिंदों कि न मिटने वाली थकान लिए ,
क्या यहीं अस्तिव है तुम्हारा तो बेहतर है|

कोई उड़ान हो ,
जो परों को पसारे जा रही हो ,
असीमित आसमान को बौना करने,
कि बादलों को छूने कि ख्वाहिश में,
यहीं पहचान है तुम्हारा तो बेहतर है |

कोई निशान हो ,
जो मिटती नहीं हो ,लकीर सी उभर आई हो ,
हृदय के ऊपर ,मैंने कोशिश कि मिटाने कि ,
मगर मिटी नहीं तुम ,धुंधला गयी हो मगर ,
यहीं याद है तुम्हारी तो बेहतर है ||

Tuesday, June 27, 2017

किसी तस्वीर को छूकर कर उसे अहसास कर लेना,
 किसी के ख्वाब को बेहद हृदय के पास कर लेना,
यहीं तो एक अदा होती जुदा है बस मोहब्बत की,
जिससे हो आस न कोई उसीसे आस कर लेना||
@सर्वाधिकार सुरक्षित
                मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)
                       7551129082


मेरा खयाल है तुम भी तो बदल सकते हो,
बनके आंसू मेरी आँखों से निकल सकते हो,
फिर तो ये प्रेम ये परवाह बस छलावा है,
जब तुम शाम सा पलभर में ढल सकते हो|| 
@सर्वाधिकार सुरक्षित
                मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)
                       7551129082

Monday, May 1, 2017

बेहयाई आँखों से शरम छीन लेती है

बेहयाई आँखों से शरम छीन लेती है,
काफिरी खुदा से रहम छीन लेती है,

जंग करना तो सोच समझकर करना,
शिकस्त शहंशाहों से हरम छीन लेती है,

दिल लगाना तो शिद्दत से निभाना,
बेवफाई मोहब्बत में सनम छीन लेती है,

ख्वाब देखना तो अपनी हद में देखना,
हकीकत सपनों का भरम छीन लेती है,

धन लुटाना तो आगे का सोचकर वरना,
गरीबी महलों के बिस्तर नरम छीन लेती है|
         
                              @सर्वाधिकार सुरक्षित
                मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)

Wednesday, April 5, 2017

मेरे लहजों में बेइंतहा इजाफ़ा हो गया..

मेरे लहजों में बेइंतहा इजाफ़ा हो गया ,
वो इस कदर लिपटा कि ,साफ़ा हो गया ,

जो तूने मेरी याद में ,कभी लिखे ही नहीं ,
उन गुमनाम खतों का ,मैं लिफ़ाफ़ा हो गया ,

तेरे हुस्न-ओ-नूर बढ़ने लगे हैं अब तो ,
चाँद भी तेरे बदन का सराफा हो गया ||

           @सर्वाधिकार सुरक्षित
               मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)
मुक्तक
(1)
हृदय की वेदनाओं को ,हृदय में हीं समोती है ,
तुम्हारी याद आने पर ,खिलौनों को संजोती है ,
अवस्था ढल गयी उसकी, तो ठुकरा दिया तुमने ,
जो कल तुमको हसाती थी,वही मां आज रोती है |

(2)

वक्त के अपने ही फ़लसफ़े है ,
स्वयं से न जाने कितने फ़ासले है ,
सफर में अपने जरा मुड़कर के तो देखो,
न कल बदले थे हम ,न आज बदले हैं ||

(3)

शहर-शहर गांव-गांव लड़ेंगे ,
हर गली हर ठांव लड़ेंगे ,
इस बार तो हद हो गयी ,
देश के कुत्ते सभी चुनाव लड़ेंगे |

(4)


ख़्वाब ख़्वाब होते हैं ,सच से कोई खबर नही होता ,
दिल खूं से भरा होता है ,ये कोई शहर नहीं होता ,
अजीज़  इतना  ही रखना  कि ,मन बहल  जाये ,
वरना  इश्क़  से विषैला कोई  जहर  नहीं   होता ||
                 
(5)
ऐसे भी  गीत  हमने,  तेरी याद  में  लिखे ,
दिल जल रहा था  इसलिए, बरसात में लिखे ,
सब अपने थे पास दिन में, तेरी याद ना आई ,
अकेले हुए जो फिर तो ,तन्हा रात  में लिखे ||
(6)

पहले तो हमने  ‘html’ से दिल लगाया था ,
फिर साथ में उसके ‘css,javaScript’ आया था ,
नींद उड़ गयी हमारी थी  उस वक्त दोस्तों ,
क्लास में सर  ने जब vb.net पढ़ाया था ||
(7)
पहले तो हमें C का चस्का लगा दिया ,
फिर बाद में C++ का भी मस्का लगा दिया ,
 एक दिन वो आकर बोले कि C# पढ़ना है ,
फिर बाद में java का भी ठप्पा लगा दिया ||

(8)
आपके चेहरे का रंगत देखकर लगता है यूँ ,
कि चाँद फीका पड़ गया है आपके इस नूर से ,
आपकी नजरों का जादू किसको ना दीवाना कर दे,
इसलिए मैं देखता हूँ तुमको ,हाँ मगर दूर से||

(9)
रात खफा है या तू ,
चाँद बेवफा है या तू ,
समझ नही आता यकीन किसपे करू ,
सच झूठा है या तू |
(10)
मेरे मोहब्बत की भी ,गुमनाम इक कहानी है,
कि उसके नाम से ज़िन्दा ,ये जिंदगानी है,
 मुझको अपने किरदार पे ,गुमां है ओ ! खुदा ,
कि इक शोख़-सी लड़की मेरी दीवानी है||

(11)

तेरे सजदे में हूँ मैं, तुझको खुदा कर दूंगा,
अपना दिल भी मैं ,तेरे दिल को अदा कर दूंगा ,
तू मेरे साँस .मेरी धड़कन में यूँ समायी है ,
तू नहीं तो ,मैं खुद हीं से खुद को जुदा कर दूंगा ||

(12)

मेरे दिल के घरौंदें में ,घर है तेरा,
फुरसतों में कभी ,इनमें आओ न तुम ,
इस घर पर तुम्हारा हीं अधिकार है ,
आकर कुछ दिन यहाँ, पर बिताओ न तुम ||

(13)

प्रेम वीक के प्रथम दिवस का ,फूल समर्पण तुम्हें प्रिये ,
मेरा तन –मन –धन सबकुछ, प्रेम भी अर्पण तुम्हें प्रिये ,
हृदय  के सारे संवादों को , शीशे-सा तुम  झलका दो ,
स्वयं रहूँ प्रतिबिम्ब तुम्हारा , कहूँ मैं दर्पण तुम्हें प्रिये||
                 (मयंक आर्यन)

Tuesday, February 21, 2017


याद 

कोई शाम हो ,
जो ढल रही हो  युहीं अनमने ढंग से ,
लालिमाओं को दामन में समेटे जा रही हो ,
परिंदों कि न मिटने वाली थकान लिए ,
क्या यहीं अस्तिव है तुम्हारा तो बेहतर है|

कोई उड़ान हो ,
जो परों को पसारे जा रही हो ,
असीमित आसमान को बौना करने,
कि बादलों को छूने कि ख्वाहिश में,
यहीं पहचान है तुम्हारा तो बेहतर है |

कोई निशान हो ,
जो मिटती नहीं हो ,लकीर सी उभर आई हो ,
हृदय के ऊपर ,मैंने कोशिश कि मिटाने कि ,
मगर मिटी नहीं तुम ,धुंधला गयी हो मगर ,
यहीं याद है तुम्हारी तो बेहतर है ||
              @सर्वाधिकार सुरक्षित
                मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)

Tuesday, February 14, 2017

मेरी नई गजल के चंद शेर ..अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें ताकि मैं और भी अच्छा लिखने का प्रयास क्र सकूँ ,धन्यवाद..
ये जिन्दगी
करवटें बदलती हुई गुमनाम-सी ये जिन्दगी ,
हो गयी है अब तो सर-ए-आम-सी ये जिन्दगी ,

अस्मिता बाकी नहीं ,सब खेलते जी जान से ,
हो गयी पल भर में हीं बदनाम-सी ये जिन्दगी ,

अब उषा की आस भी कोई नहीं बाकी रही ,
ढल रही है देख लो अब शाम सी ये जिन्दगी ||

              @सर्वाधिकार सुरक्षित
                मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)

Monday, February 6, 2017

बसंत

इन  बसंती हवाओं का हीं जोर है ,वरना दुपट्टा तुम्हारा यूँ उड़ता नहीं ,
तेरी नज़रों ने फिर यूँ संभाला मुझे ,वरना दिल ये हमारा संभलता नहीं ||

मेरे हृदय के घरौंदें में ,तेरा घर जब हुआ,
ऋतु बसंत का  फिर आगमन  तब  हुआ,
हर  तरफ खिल गये  फूल अरमानों  के,
स्वप्न देखा था जो ,वो हकीकत अब हुआ,

 घिर गये नभ में फिर प्रेम के मेघ अब, बादलों से कहो,क्यों बरसता नहीं? 
इन  बसंती  हवाओं का हीं जोर है ,वरना  तुम्हारा दुपट्टा यूँ उड़ता नहीं..

मन के शाखों पे प्रेम कि  कोपलें खिल गयी ,
कोयलें  फिर  प्रेम के  गीत   गाने  लगी ,
छेड़   दी तान    भौरों ने   फिर प्रेम की ,
तितलियाँ   प्रेम  में  फिर   नहाने  लगी ,

जब हंसों का जोड़ा आलिंगन करे ,कैसे कह दूँ ? मेरा मन मचलता नहीं ,
इन  बसंती  हवाओं का हीं जोर है ,वरना दुपट्टा तुम्हारा  यूँ उड़ता नहीं..

काम-रति  ने फिर ऐसा जादू किया ,
पत्थरों का हृदय भी कोमल हो गया ,
प्रेम  चारों  दिशाओं में  बहने लगा ,
हे! ऋतुराज ,तेरा आना सफल हो गया ,

प्रेम ना हो तो अस्तित्व खतरे में है ,प्रेम से बढ़कर कोई सफलता नहीं ,
इन बसंती हवाओं का ही जोर है ,वरना दुपट्टा तुम्हारा यूँ उड़ता नहीं ||
                            (मयंक आर्यन श्रीवास्तव)