बसंत
इन बसंती हवाओं का हीं जोर है ,वरना दुपट्टा
तुम्हारा यूँ उड़ता नहीं ,
तेरी नज़रों ने फिर यूँ संभाला मुझे ,वरना दिल ये हमारा संभलता नहीं ||
तेरी नज़रों ने फिर यूँ संभाला मुझे ,वरना दिल ये हमारा संभलता नहीं ||
मेरे हृदय के घरौंदें
में ,तेरा घर जब हुआ,
ऋतु बसंत का फिर आगमन तब हुआ,
ऋतु बसंत का फिर आगमन तब हुआ,
हर तरफ खिल गये
फूल अरमानों के,
स्वप्न देखा था जो
,वो हकीकत अब हुआ,
घिर गये नभ में फिर प्रेम के मेघ अब, बादलों से
कहो,क्यों बरसता नहीं?
इन बसंती
हवाओं का हीं जोर है ,वरना
तुम्हारा दुपट्टा यूँ उड़ता नहीं..
मन के शाखों पे प्रेम
कि कोपलें खिल गयी ,
कोयलें फिर
प्रेम के गीत गाने लगी ,
छेड़ दी तान
भौरों ने फिर प्रेम की ,
तितलियाँ प्रेम
में फिर नहाने
लगी ,
जब हंसों का जोड़ा
आलिंगन करे ,कैसे कह दूँ ? मेरा मन मचलता नहीं ,
इन बसंती
हवाओं का हीं जोर है ,वरना दुपट्टा तुम्हारा यूँ उड़ता नहीं..
काम-रति ने फिर ऐसा जादू किया ,
पत्थरों का हृदय भी
कोमल हो गया ,
प्रेम चारों
दिशाओं में बहने लगा ,
हे! ऋतुराज ,तेरा आना
सफल हो गया ,
प्रेम ना हो तो
अस्तित्व खतरे में है ,प्रेम से बढ़कर कोई सफलता नहीं ,
इन बसंती हवाओं का ही
जोर है ,वरना दुपट्टा तुम्हारा यूँ उड़ता नहीं ||
(मयंक आर्यन श्रीवास्तव)