गज़ल
इस बाग़ के ये गुल भी,
मशहूर हो रहे हैं,
डाली से टूटकर के, अब दूर हो रहे हैं,
इक टीस उठ रही है, तेरे
बिछड़ जाने से,
तेरे इश्क़ के हैं
मारे, मजबूर हो रहे हैं,
अब टूटने लगी है,
सांसो की डोर अपनी,
सब फैसले तुम्हारे, अब
मंजूर हो रहे हैं,
हौसले कुछ यूँ कि
आसमां को हरा देंगे,
परिंदे भी अपनी उड़ान
पे मगरूर हो रहे हैं||