Tuesday, January 31, 2017

फ़लसफ़े कुछ यूँ कि इश्तेहार लगते हैं........

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फ़लसफ़े कुछ यूँ कि इश्तेहार लगते हैं ,
हर तरफ अब इश्क़ के बाजार लगते हैं ,

ज़ेब में एक फूटी हुई कौड़ी नहीं लेकिन ,
देखने वाले भी खरीदार लगते है ,

चुनावों का दौर भी कमाल का माहौल है ,
हर नेता गदागर जैसे लाचार लगते हैं ,

बेवकूफियां इतनी कि सुबह से शाम हो जाये ,
शूट-बूट में मगर ,समझदार लगते हैं ,

न मंजिल है न ठिकाना न राब्ता अपना ,
किसी उजड़े हुए शहर के हम घर-बार लगते हैं ,

दुश्मनी है नींद से, इसे आने नही देते ,
कि पलकें आँखों के पहरेदार लगते हैं ,

हर सजा मंजूर ,खौफ़ है किस बात का ,
कि हम सारी गलतियों के जिम्मेदार लगते हैं ,

दिल कहा मानो ,अपनी खबर तो दो ,
हम भी ‘मयंक’ अपने हैं ,तेरे यार लगते हैं ||
(मयंक आर्यन)


Thursday, January 5, 2017

अपनी ये मुक्तक ,एक आशा और अनुरोध के साथ वर्तमान सदी के पुत्रों को समर्पित करता हूँ जो अपने माँ-बाप को उनके वृद्धा अवस्था में उन्हें छोड़ देते हैं .. आशा है वो अपने मां-बाप की भावनाओं को समझेंगे ,और अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करेंगे ..धन्यवाद ...

हृदय की वेदनाओं को ,हृदय में हीं समोती है ,

तुम्हारी याद आने पर ,खिलौनों को संजोती है ,
अवस्था ढल गयी उसकी, तो ठुकरा दिया तुमने ,
जो कल तुमको हसाती थी,वही मां आज रोती है |
        (मयंक आर्यन)

ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के  चल दिये ..

ख़्वाबों को मेरी नींदों से , चूराकर के  चल दिये ,
मैं हस रहा था , मुझको रुलाकर के  चल दिये |

आने  नहीं  दी रौशनी  आफ़ताब कि घर में,
ये क्या कम था जो ,चिरागों को बुझाकर के  चल दिये |

आने लगे हम याद जब  ,सफ़र हो गया मुश्किल ,
फिर तस्वीर मेरी सीने से  लगाकर के चल दिये |

वादे किये थे उसने ,प्यार करेगा उम्रभर ,
वादे सभी ,वो अपने भुलाकर के चल दिये |

मशरूफ़ है ,बहुत वो अपनी जिंदगानी में ,
हमको तो अपनी यादों से ,मिटाकर के चल दिये |

खयालों में उनके ,हम तो खोये थे एस कदर ,
अच्छा हुआ जो ख़ुद ही ,जगाकर के चल दिये ,

तेरे नही हो सकते हम ,इस  जन्म में सनम ,
वो अपनी मजबूरियों को गिनाकर के चल दिये |

हर जाम में नज़र आने लगा था चेहरा उनका ,
अच्छा किया जो नजरों से ,पिलाकर के चल दिये |

(मयंक आर्यन )