फ़लसफ़े कुछ यूँ कि इश्तेहार लगते हैं........
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फ़लसफ़े कुछ यूँ कि इश्तेहार लगते हैं ,
हर तरफ अब इश्क़ के बाजार लगते हैं ,
ज़ेब में एक फूटी हुई कौड़ी नहीं लेकिन ,
देखने वाले भी खरीदार लगते है ,
चुनावों का दौर भी कमाल का माहौल है ,
हर नेता गदागर जैसे लाचार लगते हैं ,
बेवकूफियां इतनी कि सुबह से शाम हो जाये ,
शूट-बूट में मगर ,समझदार लगते हैं ,
न मंजिल है न ठिकाना न राब्ता अपना ,
किसी उजड़े हुए शहर के हम घर-बार लगते हैं ,
दुश्मनी है नींद से, इसे आने नही देते ,
कि पलकें आँखों के पहरेदार लगते हैं ,
हर सजा मंजूर ,खौफ़ है किस बात का ,
कि हम सारी गलतियों के जिम्मेदार लगते हैं ,
दिल कहा मानो ,अपनी खबर तो दो ,
हम भी ‘मयंक’ अपने हैं ,तेरे यार लगते हैं ||
(मयंक आर्यन)