Friday, September 23, 2016

“”सून-सून लगे अब गांव””
सून-सून लगे अब गांव ,
अब न भावे ,आँचल के छांव||

ममता ,महतारी रोवत बा ,
आंसू से आंचल धोवत बा |
बेटा के खुशीयन के खातिर,
अंखियन में सपना बोवत बा ||

बेटा भरिहें हमरो घाव ,
सून-सून लगे अब गांव||

बेटा अब, बड़का हो गईलन,
अलगे आपन ,खाब सजवलन|
रख खिड़की पर ,माई के सपना ,
ले मेहरारू ,शहर परईलन||

नियति तोहरो ,गजब बहाव,
सून-सून लगे अब गांव||

जाने कईसन पूत भइल बा ,
रिश्ता कच्चा सूत भइल बा|
माँ-बाप के सपना तोड़ गइल जे ,
लागता किस्मत रूठ गइल बा ||

देहलस किस्मत कईसन घाव ,
सून-सून लगे अब गांव||

शहर में पईसा खूब कमइलन,
आपन खूबे ,धउक जमइलन|
मोटका गद्दा पर नींद न आवे ,
माई के ,गोदी ना पवलन||

पटकलन फिर पत्थर पर पांव,
सून-सून लगे अब गांव||

शहर अ पईसा अब न भावे,
मेहरारू अब नही सुहावे |
धके सिरवा रोअस खूबे .
जब-जब याद माई के आवे||

दिलवा में कवनो रहल न चाव,
सून-सून लगे अब गांव||

रहि-रहि मनवा जब घबराये,
फिर त कुछहु समझ न आवे|
गांवे के फिर टिकट बनवइलन,
ले मेहरारू वापस आ गईलन||

धके रोवलन माई के पांव,
सून-सून लगे अब गांव||




माई से फिर माफ़ी मगंलन,
इहें रहब , इ सबसे कहलन ,
भले,पईसा कमे कमाईब,
लेकिन सूख से खा त पाईब||

एहिजे बा अब हमरो ठांव,
अच्छा लागे लगल अब गांव||
        (मयंक आर्यन)