Tuesday, February 14, 2017

मेरी नई गजल के चंद शेर ..अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें ताकि मैं और भी अच्छा लिखने का प्रयास क्र सकूँ ,धन्यवाद..
ये जिन्दगी
करवटें बदलती हुई गुमनाम-सी ये जिन्दगी ,
हो गयी है अब तो सर-ए-आम-सी ये जिन्दगी ,

अस्मिता बाकी नहीं ,सब खेलते जी जान से ,
हो गयी पल भर में हीं बदनाम-सी ये जिन्दगी ,

अब उषा की आस भी कोई नहीं बाकी रही ,
ढल रही है देख लो अब शाम सी ये जिन्दगी ||

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                मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)