मैं नहीं हूँ
वो नींदों में है ,हमारे मगर ,
उनकी रातों में मैं नहीं हूँ |
वो लफ्जों में है हमारे मगर .
उनकी बातों में मैं नही हूँ |
वो गीतों में है हमारे मगर ,
उनके गानों में मैं नही हूँ ,
वो कहानी मैं है हमारे मगर ,
उनके फ़सानो में मैं नही हूँ||
वो तन्हाईयों में हैं हमारे मगर ,
उनकी महफ़िल में मैं नहीं हूँ ,
वो धडकनों में हैं हमारे मगर ,
उनके दिल में मैं नही हूँ ||
वो झरनों में हैं हमारे मगर ,
उनकी रवानी में मैं नही हूँ ,
वो फ़सानों में हैं हमारे मगर,
उनके कहानी में मैं नहीं हूँ||
वो यादों में हैं हमारे मगर,
उनके ख़यालों में मैं नहीं हूँ ,
वो जवाबों में हैं हमारे मगर ,
उनके सवालों में मैं नही हूँ ||
वो नदियों में हिं हमारे मगर ,
उनके किनारों में मैं नहीं हूँ,
वो चाँद है हमारा मगर ,
उनके सितारों में मैं नहीं हूँ ||
वो सावन में हैं हमारे मगर ,
उनके झूलों में मैं नही हूँ ,
वो फूलों में है हमारे मगर ,
उनके शूलों में मैं नहं हूँ||
वो सादगी में हैं हमारे मगर,
उनकी अदाओं में मैं नही हूँ ,
वो सजदे में हैं हमारे मगर ,
उनकी दुआओं में मैं नहीं हूँ ||
(मयंक आर्यन)