Tuesday, February 21, 2017


याद 

कोई शाम हो ,
जो ढल रही हो  युहीं अनमने ढंग से ,
लालिमाओं को दामन में समेटे जा रही हो ,
परिंदों कि न मिटने वाली थकान लिए ,
क्या यहीं अस्तिव है तुम्हारा तो बेहतर है|

कोई उड़ान हो ,
जो परों को पसारे जा रही हो ,
असीमित आसमान को बौना करने,
कि बादलों को छूने कि ख्वाहिश में,
यहीं पहचान है तुम्हारा तो बेहतर है |

कोई निशान हो ,
जो मिटती नहीं हो ,लकीर सी उभर आई हो ,
हृदय के ऊपर ,मैंने कोशिश कि मिटाने कि ,
मगर मिटी नहीं तुम ,धुंधला गयी हो मगर ,
यहीं याद है तुम्हारी तो बेहतर है ||
              @सर्वाधिकार सुरक्षित
                मयंक आर्यन (कैमूर,बिहार)

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